NERO तकनीक
अजय सहाय
जल संकट को वैश्विक चुनौती के रूप में स्वीकार किया जा चुका है, और विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ लगभग 82% वर्षा जल नदी अपवाह के रूप में बहकर नष्ट हो जाता है, वहाँ प्रत्येक बूँद का संरक्षण अत्यंत आवश्यक हो चुका है, इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए IIT मद्रास के वैज्ञानिकों और चेन्नई आधारित स्टार्टअप Thirto Innovations Pvt Ltd ने मिलकर वर्ष 2024 में ‘NERO’ (Neutral Energy Reclamation Optimizer) नामक एक अद्भुत जल उत्पादन मशीन विकसित की है।
जो वायुमंडलीय नमी से जल बनाती है और सौर ऊर्जा के प्रयोग से इसे शून्य ऊर्जा लागत पर कार्यशील बनाती है; यह मशीन विशेष रूप से रेगिस्तानी, शुष्क, ग्रामीण तथा सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए डिज़ाइन की गई है जहाँ पारंपरिक जल स्रोत या तो उपलब्ध नहीं हैं या दूषित हो चुके हैं; इस तकनीक का वैज्ञानिक आधार यह है कि वातावरण में हर समय कुछ प्रतिशत आर्द्रता (Relative Humidity) होती है — जैसे राजस्थान, गुजरात या थार मरुस्थल के क्षेत्रों में भी यह 30-50% तक होती है — और यही नमी यदि उपयुक्त तकनीक से संग्रहित और संघनित की जाए, तो यह पीने योग्य जल का एक सतत स्रोत बन सकती है, NERO इसी आधार पर कार्य करता है।
यह मशीन रात के समय डेसिकेंट मटेरियल के माध्यम से वातावरण की नमी को अवशोषित करती है और दिन के समय सौर ताप से उसे गरम कर वाष्पीकृत करती है, जिसके पश्चात एक कंडेन्सेशन प्रोसेस के द्वारा वह भाप पुनः शुद्ध जल में परिवर्तित होती है, जिससे प्रति यूनिट 4 से 5 लीटर पानी प्रतिदिन मिलता है; वैज्ञानिकों के अनुसार NERO एक मेनटेनेंस-फ्री, कम लागत, और इको-फ्रेंडली विकल्प है जिसका कोई भी चलते हुए यांत्रिक भाग नहीं है।
जिससे इसकी कार्यक्षमता 7 से 10 वर्षों तक निर्बाध बनी रह सकती है; यह तकनीक न केवल पीने के पानी की आपूर्ति करती है, बल्कि यह ग्रामीण विद्यालयों, आर्मी पोस्ट, रेगिस्तानी कृषि क्षेत्र, सुदूरवर्ती आदिवासी ग्रामों, और टूरिज्म हॉटस्पॉट्स जैसे क्षेत्रों में जल आत्मनिर्भरता का मॉडल भी बन सकती है; यदि भारत सरकार इसे PM KUSUM योजना, जल जीवन मिशन या Jal Shakti Abhiyan के साथ जोड़कर प्रति जिले 1,000 यूनिट लगाए तो इससे प्रतिदिन लगभग 5 लाख लीटर पानी अतिरिक्त उत्पन्न हो सकता है, और इसका खर्च भी एक बारगी इंस्टालेशन पर सीमित रहेगा क्योंकि इसका संचालन सौर ऊर्जा से होता है।
NERO मशीन को लेकर IIT मद्रास के अनुसंधान में यह पाया गया है कि इसका कंडेन्सेशन सिस्टम वातावरण में उपस्थित PM2.5, CO2, और धूलकणों को भी फिल्टर करता है, जिससे मिलने वाला पानी BIS (Bureau of Indian Standards) मानक के अनुसार पेय योग्य होता है; वर्तमान में यह तकनीक 5 लीटर/दिन उत्पादन कर रही है लेकिन भविष्य में इसके स्केलेबल मॉडल तैयार किए जा रहे हैं जो 100 लीटर, 1000 लीटर या यहाँ तक कि 10,000 लीटर प्रतिदिन उत्पादन करने में सक्षम होंगे, और यदि इस क्षमता तक यह पहुंचती है, तो यह भारत के लिए 2047 तक Jal Atmanirbhar Bharat के लक्ष्य को प्राप्त करने में क्रांतिकारी भूमिका निभा सकती है।
भारत में वर्तमान में 4000 BCM वर्षा जल गिरता है, जिसमें से मात्र 700-800 BCM संरक्षित होता है, और लगभग 2,100 BCM से अधिक जल वाष्पीकरण, अपवाह और असंगठित बहाव से व्यर्थ हो जाता है, यदि हम इस वाष्पीकृत जल का मात्र 1% भी वायुमंडल से पुनः प्राप्त कर सकें तो यह 21 BCM जल हो सकता है, यानी करीब 21 ट्रिलियन लीटर पानी, जो कि भारत की लगभग 10 करोड़ जनसंख्या की वार्षिक जल आवश्यकता पूरी कर सकता है; वैज्ञानिकों का मानना है कि NERO जैसे उपकरण को Artificial Intelligence और IoT से जोड़कर यह देखा जा सकता है कि किस क्षेत्र में कितनी आर्द्रता है, और वहाँ इस मशीन को स्वचालित रूप से अधिकतम जल उत्पादन के लिए एडजस्ट किया जाए।
साथ ही यह मशीन रिमोट मॉनिटरिंग सिस्टम, मोबाइल-ऐप आधारित डाटा फीडिंग, और ब्लूटूथ/वाई-फाई कनेक्टिविटी के साथ भी आ सकती है जिससे स्थानीय पंचायतें, स्कूल या अस्पताल स्वयं इसकी कार्यक्षमता मॉनिटर कर सकें; वर्तमान में भारत में 1.3 लाख से अधिक गाँव ऐसे हैं जहाँ जल संकट गंभीर है और लगभग 8 करोड़ जनसंख्या किसी-न-किसी रूप से जल असुरक्षा का सामना कर रही है, ऐसे में यदि प्रति गाँव एक NERO मशीन भी स्थापित की जाए और इससे 5 लीटर प्रति दिन का जल भी मिल सके तो यह 6.5 करोड़ लीटर पानी प्रतिवर्ष देगा, और 10,000 मशीनें मिलकर लगभग 182.5 करोड़ लीटर यानी लगभग 18.25 अरब लीटर जल उत्पन्न करेंगी, जो जल क्रांति की दिशा में बड़ा योगदान होगा।
यह तकनीक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी Atmospheric Water Generation (AWG) नाम से प्रसिद्ध है, लेकिन भारतीय संदर्भ में यह पहली बार कम लागत, स्थानीय निर्माण, और कम ऊर्जा खपत के रूप में सामने आई है; भविष्य में सरकार इस तकनीक को Ladakh, Thar Desert, Rann of Kutch, Bundelkhand, Vidarbha, Saurashtra, और Purvanchal जैसे क्षेत्रों में तैनात कर सकती है, और जल संकट के समाधान में यह मशीन एक नया विकल्प, एक नया मॉडल और एक नवाचार का प्रतीक बन सकती है; इसका मूल्य लगभग ₹40,000 से ₹60,000 के बीच है, लेकिन यदि यह बड़े पैमाने पर उत्पादन में आता है तो इसकी कीमत ₹25,000 तक भी लाई जा सकती है, जिससे यह अधिक सुलभ हो जाएगा।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह मशीन नवीकरणीय ऊर्जा, वातावरणीय विज्ञान, पेयजल इंजीनियरिंग, और हरित प्रौद्योगिकी (Green Tech) का अद्भुत मेल है; इसके उपयोग से ग्रामीण भारत में महिलाओं का जल लाने का समय बचेगा, जलजनित रोग घटेंगे, और बच्चों की स्कूल उपस्थिति बढ़ेगी; यदि प्रधानमंत्री ग्राम योजना, आंगनवाड़ी केंद्र, और जनजातीय आवासीय विद्यालयों में इसे शामिल किया जाए तो इससे SDG-6 (सभी के लिए स्वच्छ जल और स्वच्छता) लक्ष्य भी प्राप्त किया जा सकता है।
अंततः कहा जा सकता है कि NERO मशीन विज्ञान, नीति, सतत विकास और सामाजिक परिवर्तन का समावेशी उपकरण है, जो आने वाले वर्षों में भारत के जल भविष्य को सुरक्षित, सशक्त और आत्मनिर्भर बना सकता है।