मणिका मन वेटलैंड : मुजफ्फरपुर के जलमणिका मन वेटलैंड : मुजफ्फरपुर के जल

मणिका मन वेटलैंड : मुजफ्फरपुर

अजय सहाय

मणिका मन वेटलैंड : मुजफ्फरपुर के जल, जैव विविधता, पर्यटन और सामुदायिक विकास का आधुनिक उदाहरण के रूप में विकसित हो रहा यह स्थल उत्तर बिहार की एक ऐसी आर्द्रभूमि है, जो न केवल जल संरचना के रूप में बल्कि एक जीवंत पारिस्थितिक प्रणाली के रूप में राज्य एवं राष्ट्र स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है; मुजफ्फरपुर जिले के मुशहरी प्रखंड में स्थित मणिका मन झील 124.26 एकड़ (50.28 हेक्टेयर) क्षेत्रफल में फैली है।

 जिसका वर्ष 2025 में जिलाधिकारी श्री सुब्रत कुमार सेन द्वारा स्थलीय निरीक्षण कर सीमांकन कर पर्यटन विभाग को विस्तृत प्रस्ताव भेजा गया, जिसके पश्चात 4.76 करोड़ रुपये की लागत से नौकायन (boating), पर्यटकीय संरचनाओं, घाट, पथ, बैठने की सुविधा, एवं बर्ड वॉचिंग जोन जैसी योजनाओं का शुभारंभ किया गया; इसके साथ ही ‘मिथिला हाट’ हेतु 2.5 एकड़ भूमि का आवंटन कर स्थानीय कारीगरों को बढ़ावा देने की योजना बनाई गई।

 जिससे लगभग 500 लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार और अनुमानतः 5–7 करोड़ रुपये वार्षिक पर्यटन राजस्व सृजन की संभावना है; विशेष बात यह है कि यह झील प्रस्तावित फोरलेन से 1.5 किलोमीटर और जिला मुख्यालय से मात्र 8 किलोमीटर दूर स्थित है, जिससे इसकी पहुँच और संभावनाएँ और बढ़ जाती हैं; वेटलैंड क्षेत्रफल लगभग 503,502 वर्ग मीटर होने के कारण वैज्ञानिक गणना के अनुसार यह झील लगभग 1.98 लाख घनमीटर वर्षा जल को संग्रहीत करने और 1.2 लाख घनमीटर भूजल पुनर्भरण करने की क्षमता रखती है, जिससे 50,000 से अधिक स्थानीय लोगों की सिंचाई, कृषि और पेयजल आवश्यकताएँ पूरी होती हैं।

वैज्ञानिक आधार पर वेटलैंड की संरचना वर्टिकल (लंबवत) और हॉरिजॉन्टल (क्षैतिज) फ्रैक्चर पर आधारित होती है जो वर्षा जल को गहराई तक पुनर्भरित करते हैं और सतही जल को वेटलैंड में संतुलित रूप से फैला कर उसकी नमी बनाए रखते हैं; ISRO, CGWB एवं NGRI द्वारा किए गए अध्ययन बताते हैं कि सक्रिय फ्रैक्चर वाले वेटलैंड्स में भूजल पुनर्भरण 30–35% और जल संचयन क्षमता 20–40% अधिक होती है; मणिका मन वेटलैंड में औसतन वर्षा ऋतु में जलस्तर 1.5–3 मीटर तक और ग्रीष्मकाल में 30–80 सेंटीमीटर तक रहता है।

 जो इसके प्राकृतिक संतुलन को दर्शाता है; इस वेटलैंड में लगभग 24 प्रकार की प्रमुख वनस्पतियाँ जैसे – कमल (Nelumbo nucifera), सिंघाड़ा (Trapa natans), जलकुंभी (Eichhornia crassipes), शैवाल, कनैल (Nerium oleander), अर्जुन (Terminalia arjuna), कांस (Saccharum spontaneum), जलीय फर्न (Salvinia molesta), और Typha आदि पाई जाती हैं।  जो जल को शुद्ध करने, कार्बन अवशोषण, ऑक्सीजन उत्पादन और जैव विविधता बढ़ाने में सहायक हैं; विशेष रूप से कमल का पौधा औषधीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है – इसकी जड़ें गैस्ट्रिक अल्सर व मूत्र विकारों में, पत्तियाँ रक्तचाप व बुखार में, फूल तनाव व हृदय गति में तथा पंखुड़ियाँ स्त्री रोगों में लाभकारी हैं।

वैज्ञानिक दृष्टि से प्रति हेक्टेयर वेटलैंड से 6.1 टन कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण और 2 टन ऑक्सीजन का उत्सर्जन होता है, जिससे यह जलवायु परिवर्तन शमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है; मणिका मन झील में वर्ष में लगभग 306 टन CO2 अवशोषण होता है; परंतु इस जैव विविधता में जलकुंभी का अत्यधिक प्रसार एक चुनौती है, क्योंकि यह जल सतह को ढक कर प्रकाश संश्लेषण रोकती है, ऑक्सीजन स्तर घटाती है और मछलियों की मृत्यु तथा जल सड़न को बढ़ावा देती है; इस वेटलैंड में लगभग 35 पक्षी प्रजातियाँ जैसे – साइबेरियन क्रेन, कॉमन कूट, ग्रे हेरोन, पर्पल स्वैम्पहेन, लिटल ग्रेब, स्पॉट-बिल्ड डक आदि प्रवास करती हैं, जो इसे बर्ड वॉचिंग के लिए भी उपयुक्त बनाती हैं।

 इस परियोजना के तहत MGNREGA योजना के अंतर्गत झील की परिधि में 2500 मीटर लंबी, 2 फीट गहरी और 2 फीट चौड़ी रिचार्ज ट्रेंच निर्माण का प्रस्ताव तैयार किया गया है, जिससे जल संचयन और भूजल पुनर्भरण को बढ़ावा मिलेगा; साथ ही लगभग 100 से अधिक Soak Pits और जल संचयन टैंक प्रस्तावित हैं जिनसे 8000 घनमीटर अतिरिक्त जल संग्रह संभव होगा; वर्ष 2025 के विश्व पर्यावरण दिवस पर डीएम श्री सुब्रत कुमार सेन द्वारा बरगद का पौधा रोपण कर पौधारोपण अभियान का शुभारंभ किया गया।

जिसके तहत नीम कॉरिडोर, वेटलैंड पौधारोपण की 3 इकाइयाँ, तथा 10 से अधिक  पारंपरिक पोखरों का जीर्णोद्धार ,5 km  ट्रेंच का निर्माण किया जा रहा है वेटलैंड के 1 हेक्टेयर क्षेत्र से प्रतिवर्ष औसतन 40 लाख लीटर वर्षा जल संचयन, 5–10 लाख लीटर जल शुद्धिकरण और 3.5 करोड़ लीटर बाढ़ जल का अवशोषण संभव होता है, जिससे आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ नियंत्रण और जल संकट से राहत मिलती है।

इस पूरी योजना में पारदर्शिता हेतु ड्रोन सर्वेक्षण (Drone Surveillance), वेटलैंड मानचित्रण (Wetland Mapping), जल गुणवत्ता निगरानी (Water Quality Monitoring), जैव विविधता मानचित्रण (Biodiversity Mapping) तथा सिटीजन साइंस मॉनिटरिंग जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे अतिक्रमण, जल स्तर, पौधारोपण और वनस्पतियों की जानकारी सटीक रूप से मिलती है।

वर्तमान में मणिका मन वेटलैंड को ‘Tourism cum Eco Restoration Model Wetland’ के रूप में विकसित किया जा रहा है और इसे अंतरराष्ट्रीय ‘Ramsar Site’ की मान्यता दिलाने की प्रक्रिया भी प्रारंभिक चरण में है; Sustainable Development Goal 6 (स्वच्छ जल और स्वच्छता) और SDG 15 (भूमि पर जीवन) की दिशा में भी यह परियोजना एक आदर्श मॉडल है; इसके चारों ओर के पंचायत क्षेत्र जैसे – मनिका विष्णुचंद, मनिका हरिकेश, तरूरा गोपालपुर और पहलादपुर में पंचायत प्रतिनिधियों, स्कूलों और SHG समूहों को शामिल कर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

स्थानीय समुदाय इस परियोजना से भावनात्मक और आजीविकात्मक रूप से जुड़े; विद्यार्थियों हेतु ‘School Awareness Program’ चलाकर वेटलैंड की भूमिका, प्लास्टिक मुक्त आर्द्रभूमि और जल संरक्षण पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है; वेटलैंड में हाइड्रिला, वालिसनेरिया, सिंघाड़ा, जलशंखा, कमल, शैवाल जैसी वनस्पतियों का रोपण कर इसे पुनर्जीवित किया जा रहा है; आने वाले वर्षों में यहाँ ‘Wetland Interpretation Centre’, बर्ड वॉचिंग टावर, ग्रीन कॉरिडोर, जैविक उद्यान और स्थानीय हस्तशिल्प केन्द्र भी स्थापित करने की योजना है।

जिससे यह स्थल न केवल जैविक रूप से समृद्ध होगा बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मज़बूती देगा; इस प्रकार, मणिका मन वेटलैंड आज बिहार के लिए एक वैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टि से ऐसा प्रेरक उदाहरण बन रहा है जहाँ नीति, प्रशासन, विज्ञान और समुदाय एक साथ आकर ‘जल आत्मनिर्भर भारत 2047 की दिशा में सतत और समावेशी विकास को साकार कर रहे हैं।

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