जी , मैं हूँ, मावलिननोंग. मेघालय की राजधानी शिलांग से 90 किलोमीटर दूर एक गाँव। क्या आप कभी यहाँ आये हैं ?
चार दशक पहले मैं किसी अन्य गांव की तरह ही था . फिर एक महामारी आई मेरी गोद में रहने वाले हर घर में बीमार लोग थे . कुछ कि मौत भी हो गई . तभी एक शिक्षक खोनन्गथोरम ने लोगों को स्वच्छता का संदेश देकर जागृत किया । पहले तो लोग झिझके , फिर धीरे धीरे अपने बच्चों के अच्छे जीवन की कल्पना की . लोगों ने अपने तौर-तरीके सुधारने का फैसला किया। उन्होंने एक स्वच्छता समिति का गठन किया
समिति ने उनके घरों में शौचालय बनवाए, घरेलू और आवारा जानवरों के लिए अलग से स्थान निर्धारित किये गये . उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी फ़ैलाने से रोका गया. इस तरह मेरे यहाँ स्वच्छता एक मिशन बन गया।
अब आ कर मुझसे मिलें और अंतर देखें! हमारे प्रत्येक 97 घर बांस से बने हैं , जहाँ सेप्टिक टैंक भी हैं . हमारी सड़कें सोलर लाइट से रोशन हैं, हर जगह बांस के कूड़ेदान रखे गए हैं
धूम्रपान और सार्वजनिक रूप से थूकना मना है, पॉलिथीन पर प्रतिबंध है, जैविक कचरे से खाद बनाई जाती है. इसे खेतों में उर्वरक के रूप में उपयोग किया जाता है .गैर-जैविक कचरे को पुनर्चक्रण के लिए शिलांग भेजा जाता है.
तो इस तरह मेरा नाम – भगवान का बगीचा” हो गया . सन 2003 में डिस्कवर इंडिया द्वारा “एशिया के सबसे स्वच्छ गांव” की उपाधि से सम्मानित किया गया था न तो मेरे यहाँ कोई प्लास्टिक इस्तेमाल करता है. न ही कहीं कोई कचरा दिखता है . मेरे यहाँ महिलाओं को सबसे अधिक सम्मान दिया जाता है . बच्चों को मां का सरनेम मिलता है और पैतृक संपत्ति मां द्वारा घर की सबसे छोटी बेटी को दी जाती है। मेरा आकर्षण ही ऐसा है कि इसे “भगवान का बगीचा” बोला जाता है।
हमारे देश के पूर्वोत्तर में मेघालय की राजधानी शिलोंग से बस 90 किलोमीटर दूर ही हूँ मैं . “मेरा नाम जान गए न ?”
“ बिलकुल सही मैं मावलिन्नांग हूँ . सन 2003 में डिस्कवर इंडिया द्वारा “एशिया के सबसे स्वच्छ गांव” की उपाधि से सम्मानित किया गया था मुझे . कई लोग इसे दुनिया का सबसे स्वच्छ ग्राम भी कहते हैं .”
यदि चार दशक पहले अप मेरे यहाँ आते तो यह के अन्य आम गाँव जैसा ही था . फिर एक महामारी आई और मेरे यहाँ रहने वालों ने साफ़- सफाई का संकल्प लिया
मेरी गोद में कोई 500 लोग बसते हैं . ये सभी “खासी “ आदिवासी समाज से हैं .मेरे यहाँ कभी कहीं कोई थूकता नहीं दीखता. कोई कचरा नहीं फैलाता.
कोई आवारा मवेशी मेरे यहाँ नहीं दीखता. सड़क पर पेड़ से पत्ता गिर जाए तो उसे तत्काल सड़क के दोनों तरफ बांस से बने कूड़े-दान में डाल दिया जाता है
मेरे यहाँ सड़के पक्की हैं , अँधेरा होने पर सौर उर्जा से गाँव में प्रकाश फ़ैल जाता है . मेरे सभी 97 घरों में सैप्टिक टैंक के साथ घरों से लगे बागीचों में कंपोस्ट पिट भी बने हुए हैं. जैविक कचरे को कंपोस्ट पिट में डालकर खाद बनाई जाती है जो खेतों में काम आती है. वहीं अकार्बनिक कचरे को बांस के बॉक्स में इकट्ठा किया जाता है. इसे महीने में एक बार शिलॉन्ग भेजा जाता है जहां इसको रीसाइकिल किया जाता है.
तो कभी आइये मुझसे मिलने ! फिर अपने गाँव को भी मुझ जैसा बनाने का संकल्प भी लें !!
पंकज चतुर्वेदी