पंकज चतुर्वेदी

देश की राजधानी की आबादी बढ़ती जा रही है और उसी गति  से यहाँ पानी की मांग बढ़ यही है ।  यमुना से जल निकालने के प्रयास  असफल ही रहे हैं और करोड़ों खर्च कर भी दिल्ली की सीमा में ‘रिवर’ को  ‘सीवर ; बनने  से नहीं रोका जा सका है । दिल्ली में सारे साल पानी वितरण का तंत्र जिन टैंकर पर टिका है , उनकी जलापूर्ति   भू जल के ऐसे स्रोतों से हो रही है , जो जहर बन चुके है और उस जाल को शुद्ध- निरापद बनाने के न तो कोई उपाय है और न ही प्रयास । कितना दुखद है कि  मजबूरी में लोग उस पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं जो उन्हें बीमार बना रहा है ।

केन्द्रीय भू जल बोर्ड की ताजा रिपोर्ट बताती  है कि कि तरह  राजधानी का भूजल आर्सेनिक, फ्लोराइड और अन्य  खतरनाक रसायनों से परिपूर्ण है और यह हड्डियों के रोग, दांतों की कमजोरी से ले कर कैंसर जैसे रोग उपजा रहा है ।  सीमा से बहुत अधिक फ्लोराइड वाले इलाके में अलीपुर, द्वारका, नजफगढ़, महरौली,चाणक्यपुरी,कंझावला, रोहिणी, सरस्वती विहार, पटेल नगर शामिल हैं जबकि  कैंसर कारक आर्सेनिक सीलमपुर, डिफेंस कालोनी के भूजल में अधिक है । अलीपुर, नरेला, मॉडल टाउन, द्वारका, कापसहेड़ा, नजफगढ़,दिल्ली कैंट, वसंत विहार, कंझावला, रोहिणी,सरस्वती विहार, पटेल नगर, पंजावी बाग, राजौरी गार्डन के पानी में लवणता का आधिक्य है । विशेषज्ञों के अनुसार पानी में फ्लोराइड की अधिक मात्रा हड्डियों और दांतों को कमजोर कर देती है ।   इससे हड्डियों में मुड़ाव होने से लेकर जोड़ों में दर्द की दिक्कत होती है । आर्सेनिक की अधिक मात्रा से त्वचा रोग, आंखों के रोग, कैंसर, फेफड़ों और किडनी की बीमारी होती है। वहीं लवणता बढ़ने से ब्लड प्रेशर और पथरी की बीमारी हों तय है ।

एक तो दिल्ली में  भू जल और गहराई में जा रहा है , दूसरा की इसकी गुणवत्ता  खराब हो रही है । केन्द्रीय भू जल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) ने दिल्ली की 34 तहसीलों में भूजल का आकलन किया है, जिनमें से प्रत्येक को एक मूल्यांकन इकाई कहा जाता है। इन 34 मूल्यांकन इकाइयों में से 13 (38%) को ‘अति-दोहित’, 12 (35%) को ‘गंभीर’, चार (12%) को ‘अर्ध-गंभीर’ और पांच इकाइयों (15%) को ‘सुरक्षित’ श्रेणी में रखा गया।  राजधानी में भूजल की उपलब्धता सालाना 291.54 मिलियन घन मीटर है। पाताल खोद कर निकाले गए पानी से यहां 47 हजार पांच सौ हैक्टर खेत सींचे जाते हैं। 142 मिलियन घन मीटर पानी कारखानों व पीने के काम आता है। दिल्ली जल बोर्ड हर साल 100 एमजीडी पानी जमीन से निकालता है। गुणवत्ता के पैमाने पर यहां का भूजल लगभग जहरीला हो गया है। जहां सन 1983 में यहां 33 फुट गहराई पर पानी निकल आता था, आज यह गहराई 132 फुट हो गई है ओर उसमें भी नाईट्रेट, फ्लोराईड व आर्सेनिक जैसे रसायन बेहद हानिकारक स्तर पर हैं। सनद रहे कि पाताल के पानी को गंदा करना तो आसान है लेकिन उसका परिषोधन करना लगभग असंभव। जाहिर है कि भूजल के हालात सुधारने के लिए बारिष के पानी से रिचार्ज व उसके कम देाहन की संभावनाएं खोजना होंगी व यहां से ज्यादा पानी लिया नहीं जा सकता।

आखिर दिल्ली के गर्भ के जल को जहरीला कौन बना रहा है ?  इस महानगर  में  कूड़े  का सही तरह से प्रबंधन न होना। कूड़े  के तीन विशाल पहाड़  और उनका हर दिन बढ़ता कद , सारी दुनिया से वैध-अवैध तरीके से  इलेक्ट्रॉनिक कूड़े  का आना व उसका गैर वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण से उपजे  खतरनाक रसायन  बहुत चुपके से धरती में गहरे तक समा  गए और जीवनदायी जल को जहर बना दिया । ई कचरे का लगभग 97 फीसदी कचरे को अवैज्ञानिक तरीके से जला कर या तोड़ कर कीमती धातु निकाली जाती है व शेष को यूं ही कहीं फैंक दिया जाता है। इससे रिसने वाले रसायनों का एक अद्श्य लेकिन भयानक तथ्य यह है कि इस कचरे कि वजह से पूरी खाद्य श्रंखला बिगड़ रही है । ई – कचरे के आधे – अधूरे तरीके से निस्तारण से मिट्टी में खतरनाक रासायनिक तत्त्व मिल जाते हैं जो पेड़ – पौधों के अस्तित्व पर खतरा बन रहा है। इसके चलते पौधों में प्रकाश संशलेषण की प्रक्रिया ठीक से नहीं हो पाती है और जिसका सीधा असर वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा पर होता है। इतना ही नहीं पारा, क्रोमियम , कैडमियम , सीसा, सिलिकॉन, निकेल, जिंक, मैंगनीज, कॉपर आदि भूजल पर भी असर डालते हैं ।

सबसे खतरनाक कूड़ा तो बैटरियों, कंप्यूटरों और मोबाईल का है। इसमें पारा, कोबाल्ट, और ना जाने कितने किस्म के जहरीले रसायन होते हैं। कैडमियम से फेफड़े प्रभावित होते हैं, जबकि कैडमियम के धुएं और धूल के कारण फेफड़े व किडनी दोनों को गंभीर नुकसान पहुंचता है। एक कंप्यूटर का वजन लगभग 3.15 किलो ग्राम होता है। इसमें 1.90 किग्रा सीसा और 0.693 ग्राम पारा और 0.04936 ग्राम आर्सेनिक होता हे। जो जलाए जाने पर सीधे वातावरण में घुलते हैं। इनका अवशेष पर्यावरण के विनाश का कारण बनता है। षेश हिस्सा प्लास्टिक होता है। इसमें से अधिकांश  सामग्री गलती-’सड़ती नहीं है और जमीन में जज्ब हो कर मिट्टी की गुणवत्ता को प्रभावित करने  और भूगर्भ जल को जहरीला बनाने  का काम करती है। ठीक इसी तरह का जहर बैटरियों व बेकार मोबाईलो से भी उपज रहा है। इनसे निकलनेवाले जहरीले तत्व और गैसें मिट्टी व पानी में मिलकर उन्हें बंजर और जहरीला बना देते हैं। फसलों और पानी के जरिए ये तत्व हमारे शरीर में पहुंचकर बीमारियों को जन्म देते हैं।

इसके अलावा बैटरियों से निकलने वाला तेजाब , नालों  का रिसाव , वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण का बरसात या ऑस के साथ मिल कर धरती पर गिरना और उसे सोख लेना जैसे कई कारक हैं जिन्होंने  धरती में जहर भर दिया । यहाँ के खेत और यमुना के कछार  में सब्जी उगाने में बेशुमार रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल ने गहरे तक धरती को और उसकी कोख के पानी को विश में बदला है ।

दिल्ली में जल आपूर्ति बगैर भूजल के संभव नहीं है और इस तरह की पानी के सेवन से बड़ी आबादी की बीमार होने से  लोगों पर आर्थिक और सामाजिक बोझ तो बढ़ ही रहा है ,  इंसान के कार्य अकरने की क्षमता और आर्थिक तंत्र भी गड़बड़ा रहा है  आज तत्काल जरूरत है कि दिल्ली और उसके आसपास 100 किलोमीटर दायरे में कचरे की खंती  बनाने, कचरे के निस्पादन, खासकर  इलेक्ट्रॉनिक  कचरे के , की कड़ी और स्पष्ट नीति बने , इस समूचे इलाके में जैविक खेती  अनिवार्य की जाए ।