हरीश बहुगुणा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है
अमनदीप नारायण सिंह
हर किसी की जिंदगी में एक मोड़ आता है, जब दिल की आवाज भीड़ की शोर से ज्यादा तेज सुनाई देने लगती है। हरीश बहुगुणा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। “जै जै कै दिन कि बात, आपणी माटी फेर बोलाई।” कुमाऊँ की इस कहावत का मर्म हरीश ने बखूबी समझा। कुमाऊँ की मिट्टी, पहाड़ की हवा, और बचपन के वो पन्याला (चश्मा) से बहता शुद्ध जल ये सब यादें उनके दिल में कहीं गहराई में बसी थीं।
जवानी के दिनों में संसाधनों की कमी के कारण एलएलबी प्रथम वर्ष की पढ़ाई और पहाड़ छोड़कर दिल्ली जैसे महानगर की चकाचौंध में चले गए थे। वहां की भागदौड़, नौकरी की जिम्मेदारियाँ, और एक मशीन जैसे दिनचर्या में 23 साल कैसे बीत गए, उन्हें खुद भी पता नहीं चला। पर पहाड़ की ठंडी हवा, मां के हाथ की झंगोरे की रोटी, और गांव की सादगी ये सब एक टीस बनकर दिल में बनी रही।

फिर एक दिन 2020 में कोरोना महामारी ने दुनिया भर को अपने जद में ले लिया। फिर क्या था, शहर से पैर उखड़ गए , आपदा में अवसर मिल गया। कुमाऊंनी कहावत “पहाड़ हुलै छन, मन त मोहन्यौं छै-यही सोचते-सोचते एक दिन उन्होंने फैसला लिया, अब और नहीं। उन्होंने दिल्ली की नौकरी छोड़ी, उस जीवन को पीछे छोड़ा, और लौट आए अपने असली घर, उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में, जहां पहाड़ों की गोद में बसा था उनका गांव।
यह कोई आसान फैसला नहीं था। पर उनके मन में एक मिशन था स्थानीय समुदाय, विशेषकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना और शुद्ध, पारंपरिक खानपान के जरिए बीमारियों से लड़ना उन्होंने अपने ब्रांड की शुरुआत की, जिसमें मंडुवे का आटा, झंगोरा, बिच्छू बूटी की चाय, बुरांश का जूस, पहाड़ी माल्टा का रस और लहासुन (जंगली लहसुन) जैसे स्थानीय उत्पाद शामिल है। उनका मानना है जैसा आहार वैसा विचार।
उन्होंने गांव की महिलाओं को ट्रेनिंग देना शुरू किया, उन्हें संसाधन दिए और एक नई पहचान दी।
“जहाँ रीता, वहाँ चांदी।” कुमाऊँ की इस कहावत की तरह, हरीश ने दिखा दिया कि अगर मन में सेवा का भाव हो, कुछ नया करने की जिद हो तो मिट्टी में भी सोना उग सकता है।
हरीश बहुगुणा अब सिर्फ एक उद्यमी नहीं हैं, वे एक वापसी की प्रेरणा हैं, जो यह बताते हैं कि अपने मूल की ओर लौटना कभी हार नहीं होता, बल्कि वही असली जीत होती है।
बहुगुणा का प्रारंभिक जीवन-
हरीश बहुगुणा निर्मोही का जन्म कुमाऊं हिमालय की गोद में बसा बाल मिठाई के लिए प्रसिध्द शहर अलमोड़ा के दूरस्थ गांव मुलियाधारा में हुआ। इन्हीं पहाड़ की वादियों में पले-बढ़े हरीश बहुगुणा वर्ष 1998 में धनाभाव के कारण एलएलबी प्रथम वर्ष की पढ़ाई छोड़कर दिल्ली चले गए। 23 साल दिल्ली में रहते हुए निजी क्षेत्र में कार्य करते रहे। वर्ष 2020 में वह कोरोना के कारण वापस पहाड़ चले आए।
यहीं से उन्होंने पहाड़ की बिखरी प्राकृतिक संपदा को नया रुप देना शुरु किया। आपको बता दें कि हरीश के साथ उनके परिवार में उनकी पत्नी हैं और दो लड़के हैं। उनका बड़ा लड़का इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है, वहीं छोटा लड़का जो कक्षा आठवीं में है वो इनके काम में अपनी सहभागिता दर्ज कराता है। उनकी पत्नी माया बहुगुणा ने मिलकर झाड़पात में जान डालनी शुरु की और इन्हीं वनस्पतियों से उन्होंने कई मूल्यवर्धक उत्पाद बना डाले।

इतना आसान नहीं रहा सफर अभी तक का-
कुछ कर गुजरने की तमन्ना और मजबूत इच्छा शक्ति के सामने कुछ भी काम असंभव नहीं होता है। इस बात को प्रमाणित कर दिखाया है हरीश बहुगुणा ने। आपको बता दें की हरीश बहुगुणा आज प्रकृति माई नाम से एक प्राकृतिक उत्पाद स्टोर का संचालन करते हैं। लेकिन ये सब उनके लिए इतना आसान नहीं था।
कृषि पत्रकार अमनदीप से बात करते हुए हरीश बहुगुणा ने इस रास्ते में आएं कठिनाईओं का जिक्र करते हुए कहते हैं कि असली संघर्ष अब शुरू हुआ था, स्थानीय जन से कोई सहयोग मिलना तो दूर मुझे झाड़ पात वाला तक बोला गया, एक तरह से उपेक्षित था मैं क्योंकि मैं लीक से हटकर चलने का प्रयास कर रहा था। वे आगे कहते हैं कि मैं स्वय उपेक्षित था स्थानीय समाज के लिए शहर से पलायन करके पहाड़ में आया हुआ ।
इसलिए मैंने भी अपने आराध्य ग्वेल ज्यू को साक्षी मानकर अपने आसपास लगभग उपेक्षित पड़ी वनस्पति फल फूल पर ध्यान देना आरंभ किया और बिच्छू घास, जंगली, आंवला, बुरांस, गेंदा जैसे घटक पर प्रयोग करके उत्पाद बनाने आरंभ किए और उत्पाद बनाकर सोशल मीडिया पर डालता गया और आभाषी जगत के मित्रों ने साथ दिया और सफलता मिलने लगी।
हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि शुरुआत में वे सरकार से सहायता लिया, मित्रों से उधार लिया और आज 3 साल से हरीश सफलतापूर्वक कल्याणी/प्रकृतिमाई नाम से एक प्राकृतिक स्टोर का संचालन कर रहे हैं। हरीश कहते हैं कि हमारा प्रयास आपको घर जैसा घर से बनाकर देना रहता है और वे कहते हैं कि इन कार्यों में मेरी पत्नी का पूर्ण सहयोग रहता है।

उत्पादों की इंग्लैंड और यूएसए में भी मांग-
बहुगुणा दंपती प्राकृतिक वनस्पतियों से विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार करते हैं। कुछ प्रमुख उत्पाद जैसे बिच्छु घास के लड्डु, पापड़, माल्टा का जूस, खुबानी की कैंडी, आंवला के विभिन्न उत्पाद जैसे अचार, कैंडी, रस, शैंपू आदि, बुरांश के फूल का रस इत्यादि। ये सारे उत्पाद देश-विदेश में काफी लोकप्रिय हैं।
इंग्लैंड से यूएसए तक हरीश इन उत्पादों की ऑलाइन डिलीवरी करते हैं। वहीं देश की बात करें तो गुजरात, दिल्ली, बिहार, राजस्थान आदि राज्यों में ये अपने उत्पाद का स्पलाई करते हैं।
आपको बता दें कि हरीश उम्मीद जताते हैं कि इनका सबसे ब्रांडेड उत्पाद बिच्छु घास के लड्डु का प्रयोग सेहत के लिए तो फायदेमंद है ही साथ ही साथ पर्वतीय क्षेत्र में इस वनस्पति की महता को भी बढ़ाएंगे।हरीश बताते हैं कि ये सारे कार्य उनकी पत्नी माया बहुगुणा के सहयोग से ही सफलतापूर्वक पूरा हो पा रहा है।
मेरा हिस्से नए-नए प्रयोग और मार्केटिंग का कार्य है वहीं पत्नी के हिस्से निर्माण व बॉटलिंग का कार्य। मेरा अधिकतर प्रयास रहता है कि कच्चे माल से लेकर ग्राहक को अपटेड भेजने तक में स्थानीय महिलाओं को साथ लिया जाए।
केंद्र और राज्य सरकार कि योजनाएं है लाभकारी-
माया बहुगुणा कहती हैं कि केंद्र और राज्य सरकार की ओर से चलाए जा रहे महिला सशक्तिकरण योजना से काफी सहायता मिली है जिससे महिलाओं का जीवन स्तर भी सुधरा है। वहीं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की ओर से भी सहायता की जाती है। हरीश कहते हैं कि सरकारी योजनाओं से भी हमें अपने बिजनेस को बढ़ाने में काफी सहायता मिली है।

बेरोजगारों का संवार रहे जीवन-
आपको बता दें कि प्रकृति माई केवल एक प्राकृतिक स्टोर की उत्पाद भर नहीं है। अपने पुराने समय को याद करते हुए हरीश कहते हैं कि जब मैं दिल्ली में नौकरी करता था तब आर्थिक रुप से स्वतंत्र नहीं था लेकिन आज के समय में कल्याणी इंटरप्राइजेज की सलाना टर्नओवर 50 लाख रुपए हैं जिससे हमें आत्मनिर्भर होने और आर्थिक रुप से स्वतंत्र होने में सफलता हासिल हुई है।
इतना ही नहीं कल्याणी इंटरप्राइजेज व प्रकृतिमाई स्वयं सहायता समूह में 56 महिला-पुरुष को प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रुप से रोजगार भी मिला है। रिवर्स पलायन और स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराने खासकर, महिलाओं के लिए नए अवसर खोलने के लिए बहुगुणा दंपत्ती का महतत्वपूर्ण योगदान है। इतना हीं नहीं इस दंपती को इस कार्य के लिए विभिन्न मंचों से सम्मान भी प्राप्त हुआ है।
अपने कार्य के लिए विभिन्न मंचों पर हो चुके हैं सम्मानित –
हरीश कहते हैं कि अब कार्य करते हुए सम्मान भी मिलता है। वर्ष 2024 में अयोध्या के शाश्वत हिंदू नामक संगठन ने रिवर्स पलायन और आयुर्वेद पर कार्य करने के लिए श्री अरविंदो पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
वहीं वर्ष 2025 की गणतंत्र दिवस की परेड देखने को सपत्नीक माननीय प्रधानमंत्री जी के अतिथि के रूप में शामिल होने का अवसर मिला और 2025 में ही IIt दिल्ली के कार्यक्रम कृषि कुम्भ- आधुनिक भारत के नए कृषक, में भी मेहमान बनकर सीखने को मिला और उन्होंने अपने वैल्यू ऐडेड पर्वतीय उत्पाद से कार्यक्रम में आए मेहमान को अवगत भी कराया।
नि:शुल्क भोजन और आवास भी करते हैं प्रदान-
बहुगुणा कहते हैं कि अपने आराध्य देवों की कृपा से जागेश्शवर,चिताई, कसार देवी मंदिर दर्शन को जाने वाले भक्तों को एक दिवसीय नि:शुल्क भोजन और आवास
की व्यवस्था करते हैं। साथ ही अदिति आयुर्वेद बिहार की मदद से अपने गांव के मंदिर में आयुर्वैदिक दवाओं का वितरण भी कर रहे हैं और पहाड़ी बाखली नामक एक घुमक्कड़ समूह के साथ मिलकर सीड बॉल भी वितरित करते हैं।
बहुगुणा कहते हैं कि प्रकृति माई संस्थान व्यवसाय के साथ ही पलायन रोकने का एक सामाजिक आंदोलन भी है। उनका कहना है कि यदि कोई व्यक्ति स्वरोजगार स्थापित करने के लिए कार्य सीखने का इच्छुक हो तो उसके लिए भी संस्थान में नि:शुल्क व्यवस्था है।
अंत में हरीश कहते हैं कि मैं अभी भी छात्र हूं प्रकृति से निरंतर सीख रहा हूं प्रकृति के साथ रहकर। आगे उन्होंने कहा 23 वर्षों तक शहरी जीवन के हर रंग को जीकर अब जब 3 वर्ष प्रकृति के साथ बिताए तो समझ में आया कि प्रकृति के निकट रहकर शहरी जीवन से उत्तम जीवन जीया जा सकता है और वे लोगों से अपने पहाड़ घूमने का निमंत्रण देते हैं और कहते हैं जब भी आप पहाड़ आएं तो विनम्रतापूर्वक आएं। यहां आकर प्रकृति मां को दूषित न करें।