छोटी-छोटी आदतें, बड़ी जल क्रांति: भारत में जल बचत का वैज्ञानिक मॉडलछोटी-छोटी आदतें, बड़ी जल क्रांति: भारत में जल बचत का वैज्ञानिक मॉडल

भारत में जल बचत का वैज्ञानिक मॉडल

अजय सहाय

छोटी-छोटी आदतों से पूरे भारत में जल बचत की क्रांति संभव है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका वैज्ञानिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में प्रतिदिन जल उपयोग की आदतें ही जल संकट को गहराती जा रही हैं, जबकि वैज्ञानिक आंकड़ों के अनुसार यदि हर व्यक्ति प्रतिदिन मात्र 10 लीटर पानी बचा ले तो 140 करोड़ की आबादी वाला भारत प्रतिदिन 1400 करोड़ लीटर और वार्षिक 51100 करोड़ लीटर यानी 51.1 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) जल बचा सकता है, जो भारत की कुल वार्षिक भूजल खपत (432 BCM) का लगभग 12% है और इससे देश की अधिकांश जल समस्याओं का समाधान निकल सकता है ।

 उदाहरणस्वरूप हाथ धोते समय यदि हर व्यक्ति नल खुला छोड़ देता है तो प्रति मिनट औसतन 6 लीटर पानी बहता है, जबकि नल बंद कर साबुन लगाने की आदत से प्रतिदिन प्रति व्यक्ति औसतन 20 लीटर जल बचत संभव है, इसी तरह दाँत ब्रश करते समय यदि नल खुला छोड़ते हैं तो लगभग 10-15 लीटर पानी प्रतिदिन व्यर्थ जाता है, जबकि केवल मग या ग्लास का प्रयोग कर ब्रश करने पर 1-2 लीटर पानी से ही काम हो जाता है, इससे हर व्यक्ति प्रतिवर्ष लगभग 4500 लीटर पानी बचा सकता है, भारत में 85% से अधिक घरों में आज भी बर्तन धोने में लगातार नल चलाना सामान्य आदत है, जिससे औसतन 100 लीटर पानी प्रतिदिन एक घर में बर्बाद होता है ।

 अगर प्रत्येक व्यक्ति पहले बर्तन सुखाकर मैल हटा ले और फिर कम पानी से धोये तो एक घर में प्रतिवर्ष औसतन 36500 लीटर पानी बचाया जा सकता है, स्नान करते समय शॉवर का उपयोग करने पर औसतन 15 से 20 लीटर प्रति मिनट पानी खर्च होता है, जबकि बाल्टी से स्नान करने पर यह मात्रा मात्र 15-20 लीटर पूरे स्नान में सीमित हो सकती है, यदि हर घर बाल्टी स्नान को अपनाए तो अकेले स्नान से प्रतिवर्ष भारत में 12.7 BCM पानी बचाया जा सकता है।

वहीं शौचालयों में फ्लश का अधिक प्रयोग भी बड़ा कारण है, जहां प्रति फ्लश लगभग 10-15 लीटर पानी व्यर्थ होता है, जबकि ड्यूल फ्लश सिस्टम से प्रति उपयोग लगभग 50% जल की बचत होती है, भारत में औसतन 5 करोड़ से अधिक घरों में फ्लश टॉयलेट्स हैं, यदि सभी घर ड्यूल फ्लश सिस्टम अपनाएं तो हर वर्ष लगभग 8-10 BCM जल बचत संभव है ।

कपड़े धोने की आदतें भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, हाथ से कपड़े धोते समय नल खुला छोड़ने से लगभग 75-100 लीटर पानी प्रति बार खर्च होता है, जबकि यदि मग या बाल्टी से पानी लेकर धोया जाए तो यही काम 20-30 लीटर में पूरा हो सकता है, जिससे प्रत्येक घर में प्रतिवर्ष लगभग 25000 लीटर जल बचाया जा सकता है, कार, बाइक, स्कूटर आदि वाहनों की धुलाई में भारत में औसतन 150-200 लीटर पानी प्रति वाहन खर्च होता है, यदि गीले कपड़े और मग से सफाई की आदत अपनाई जाए तो यही सफाई मात्र 20-25 लीटर पानी में संभव है, जिससे प्रति वाहन प्रतिवर्ष लगभग 18000 लीटर पानी बचाया जा सकता है।

 भारत में लगभग 20 करोड़ वाहन पंजीकृत हैं, जिनमें से 10% वाहन भी यह आदत अपनाएं तो वार्षिक लगभग 36 BCM जल बचाया जा सकता है, बगीचे और पौधों में अंधाधुंध पाइप से सिंचाई से भी लाखों लीटर पानी व्यर्थ जाता है, जबकि ड्रिप इरिगेशन या टपक सिंचाई अथवा बूँद-बूँद सिंचाई से यह खर्च 70-80% तक घटाया जा सकता है, यदि भारत के 5 करोड़ घरों में 10% घर भी ड्रिप इरिगेशन अपनाएं तो सालाना 4-5 BCM जल बचाया जा सकता है, इसी तरह RO वाटर प्यूरीफायर भी जल बर्बादी का बड़ा स्रोत हैं, जिनसे प्रति लीटर शुद्ध जल के बदले 2-3 लीटर पानी बर्बाद होता है, भारत में 10 करोड़ से अधिक घरों में RO सिस्टम हैं, यदि RO से निकलने वाले वेस्ट वाटर को पौधों, फर्श सफाई, टॉयलेट फ्लश आदि में उपयोग करें तो हर वर्ष लगभग 8-10 BCM जल बचाया जा सकता है ।

 इसी प्रकार होटल, रेस्टोरेंट्स और सामुदायिक स्थलों पर पानी की अत्यधिक बर्बादी होती है, जहां बर्तन धुलाई, टॉयलेट फ्लश और सफाई में पानी का अत्यधिक उपयोग सामान्य है, यदि इन स्थानों पर ऑटोमैटिक सेंसर युक्त नल, ड्यूल फ्लश सिस्टम और RO वेस्ट वाटर रीयूज़ अपनाया जाए तो औसतन 10-12 BCM जल बचत संभव है ।

इसके अलावा किचन वेस्ट वाटर (Grey Water) को फर्श सफाई, टॉयलेट फ्लश या बागवानी में प्रयोग कर हर घर में प्रतिवर्ष लगभग 15000-20000 लीटर पानी पुनः उपयोग में लाया जा सकता है, जिससे भारत में सालाना 20-25 BCM पानी बचाया जा सकता है, भारत में यदि हर व्यक्ति स्नान, ब्रश, हाथ धोना, कपड़े धोना, वाहन धुलाई, बर्तन सफाई, शौचालय उपयोग, RO वेस्ट वाटर, ड्रिप इरिगेशन और ग्रे वॉटर रीयूज जैसी 10 आदतें अपनाए तो वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार लगभग 150-180 BCM जल बचाया जा सकता है, जो भारत की कुल वर्षाजल संचयन क्षमता का लगभग 40% है ।

इससे कृषि, उद्योग और घरेलू तीनों क्षेत्रों में जल संकट का हल संभव है, विशेषज्ञों के अनुसार पानी बचाने की ये आदतें मात्र व्यक्तिगत स्तर पर नहीं, बल्कि सामाजिक आंदोलन का स्वरूप ले सकती हैं, यदि स्कूल, कॉलेज, पंचायत, नगर निगम, ग्राम सभा स्तर पर इन आदतों को अनिवार्य किया जाए तो यह ‘जल आत्मनिर्भर भारत 2047’ का सशक्त आधार बन सकता है, साथ ही ‘कैच द रेन’, ‘नेशनल वॉटर मिशन’, ‘जल शक्ति अभियान’, ‘स्वच्छ भारत मिशन’ जैसे सरकारी कार्यक्रमों से इन आदतों का समन्वय कर जल संरक्षण को राष्ट्रीय संस्कार में बदला जा सकता है ।

वैज्ञानिक रूप से भी यह प्रमाणित है कि छोटी आदतों से बड़े परिवर्तन संभव हैं, वर्ष 2022 की यूनिसेफ-नीति आयोग रिपोर्ट के अनुसार यदि भारत में प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन 5 लीटर पानी भी बचाए तो हर वर्ष 25550 करोड़ लीटर पानी बचाया जा सकता है, जो 10 करोड़ लोगों को पूरे वर्ष पेयजल प्रदान करने के लिए पर्याप्त है, विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि जल संरक्षण के साथ ऊर्जा बचत भी संभव है क्योंकि जल शोधन, पम्पिंग और वितरण में भारी बिजली खर्च होती है, जिससे पानी बचाने से कार्बन फुटप्रिंट में भी कमी आती है ।

 यही नहीं, इन आदतों के चलते ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन भी घटता है, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को भी कुछ हद तक रोका जा सकता है, भारत सरकार का भी लक्ष्य है कि 2030 तक घरेलू जल उपयोग में 30% तक पानी की बचत हो, जिसे केवल व्यवहारिक बदलाव से ही हासिल किया जा सकता है ।

 अतः छोटी-छोटी आदतों जैसे—नल बंद रखना, बाल्टी स्नान, मग से सफाई, ड्यूल फ्लश का प्रयोग, ड्रिप इरिगेशन, RO वेस्ट वाटर रीयूज, ग्रे वॉटर उपयोग, जल-जागरूकता कार्यक्रम, स्कूल-कॉलेज में जल पाठ्यक्रम, और सामुदायिक जल प्रबंधन जैसी पहलें मिलकर पूरे भारत में जल क्रांति ला सकती हैं, जिससे न केवल जल संकट का समाधान होगा बल्कि सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को भी मजबूती मिलेगी, विशेषज्ञों के अनुसार यदि 140 करोड़ भारतीय नागरिक इन आदतों को अपनाते हैं तो भारत में जल आत्मनिर्भरता, आर्थिक समृद्धि, सामाजिक शांति और पर्यावरणीय संतुलन का युग आरंभ हो सकता है।

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