बारिश का हर कतरा कीमती
अजय सहाय
भारत में प्रतिवर्ष औसतन 4000 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) वर्षा जल गिरता है, किंतु इस अमूल्य जल संपदा का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि इसका बड़ा भाग व्यर्थ बहकर या वाष्पीकृत होकर नष्ट हो जाता है—लगभग 3200 BCM वर्षा जल व्यर्थ चला जाता है जिसमें से 800–1000 BCM वाष्पीकरण के कारण और 1869 BCM नदियों में बहाव के रूप में समुद्र की ओर चला जाता है, जोकि रिचार्जिंग के लिए उपयोग नहीं हो पाता।
शेष में मात्र 432 BCM ही भूजल रिचार्ज में सफल होता है, जिससे भारत की जल आत्मनिर्भरता की स्थिति अत्यंत संकटपूर्ण बन गई है, विशेषकर तब जब वर्तमान में 65% सिंचाई, 85% ग्रामीण जल आपूर्ति और 50% शहरी जल आपूर्ति भूजल पर आधारित है। वैज्ञानिक स्रोतों जैसे केंद्रीय जल आयोग (CWC), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी (NIH), ISRO और भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार भारत की जल संचयन प्रणाली में वेटलैंड्स मात्र 75–80 BCM, वन क्षेत्र 90–100 BCM, पारंपरिक जल निकाय जैसे तालाब, पोखर, बावड़ी 80–100 BCM, नहरें 20 BCM, सोकपिट्स 10–15 BCM, और वर्षा जल संचयन (RWH) प्रणालियाँ लगभग 20–25 BCM जल ही संचित कर पाती हैं ।
जो संपूर्ण वर्षा जल का मात्र 15–18% हिस्सा ही होता है जबकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कम से कम 50–60% वर्षा जल का संरक्षण व पुनर्भरण आवश्यक है ताकि 2047 तक भारत जल आत्मनिर्भर बन सके। समाधान के रूप में सबसे पहले यह आवश्यक है कि वर्षा जल बहाव को कम करने हेतु रिवर रनऑफ को ब्लॉक कर वैज्ञानिक संरचनाएँ जैसे रिचार्ज ट्रेंच, सोखता गड्ढा, चेक डैम, नेचुरल रीचार्ज ज़ोन, फार्म पोंड, पारकोलेशन टैंक, बायो रीचार्ज पिट्स, तथा ग्रेविटी बेस्ड रिचार्ज सिस्टम को तीव्र गति से ग्राम, वार्ड, मोहल्ला स्तर पर लागू किया जाए।
ग्रामीण क्षेत्रों में MGNREGA, कैच द रेन मिशन, और जल जीवन हरियाली अभियान जैसे कार्यक्रमों के अंतर्गत वेटलैंड पुनर्जीवन, गड्ढों की खुदाई, वृक्षारोपण, नहरों की सफाई और वर्षा जल संग्रहण को और सशक्त करने की आवश्यकता है ताकि कुल 4000 BCM में से कम से कम 2000 BCM जल भूमि में पुनः प्रविष्ट किया जा सके। यदि पारंपरिक जल संरचनाओं की जीर्णोद्धार, हर घर वर्षा जल संचयन, नदियों के किनारे बफर जोन में वनरोपण, तथा 2.5 लाख किमी की सूखी पड़ी छोटी नदियों के पुनर्जीवन के माध्यम से वैज्ञानिक कार्य किए जाएं तो अकेले इन उपायों से ही 600–700 BCM जल वर्ष भर संग्रहीत किया जा सकता है।
RWH प्रणाली को सभी भवनों, विद्यालयों, सरकारी कार्यालयों और उद्योगों में अनिवार्य करके इसे 25 BCM से बढ़ाकर 150–200 BCM तक किया जा सकता है। इसी प्रकार 2 करोड़ से अधिक खेत तालाबों की योजना, प्रत्येक पंचायत में 10 सोकपिट निर्माण और 1–1 वेटलैंड जीर्णोद्धार का लक्ष्य लेकर यदि सभी राज्यों में समन्वित नीति बने तो अनुमानतः वर्ष 2047 तक भारत प्रत्येक वर्ष 1800–2000 BCM वर्षा जल का वैज्ञानिक रूप से भूगर्भीय पुनर्भरण कर सकता है, जिससे भूजल स्तर पुनः 10–30 फीट तक आ सकता है और वर्तमान में 500–1000 फीट गहराई तक पहुँच चुका जल संकट समाप्त हो सकता है।
इस प्रकार भारत में वर्षा जल के 3200 BCM के अपव्यय को संरक्षित करने हेतु वैज्ञानिक योजनाओं, जन सहभागिता, MGNREGA के तहत नेचुरल रिसोर्स मैनेजमेंट (NRM) कार्यों की तैनाती और हर घर–हर खेत–हर भवन तक वर्षा जल संग्रहण एवं रिचार्ज को पहुंचाना ही जल आत्मनिर्भर भारत 2047 का एकमात्र रास्ता है।
यदि केंद्र और राज्य सरकारें अगले 20 वर्षों में प्रति वर्ष 500–700 BCM अतिरिक्त जल भूजल रिचार्ज हेतु संग्रहीत करती हैं तो भारत 2047 तक 70–75% वर्षा जल को रोक कर उपयोग कर पाने में सक्षम होगा, जिससे देश में जल संकट समाप्त कर सामाजिक–आर्थिक–पर्यावरणीय संतुलन कायम किया जा सकेगा।।
प्रोग्राम ऑफिसर व स्वतंत्र लेखक, मुजफ्फरपुर, बिहार