हिमाचल में बादल फटने की बढ़ती घटनाएँहिमाचल में बादल फटने की बढ़ती घटनाएँ

जलवायु परिवर्तन, मानवीय हस्तक्षेप और पर्यावरणीय असंतुलन का खतरनाक गठजोड़

अजय सहाय

हाल के एक दशक में हिमाचल प्रदेश और समग्र हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों के तेज़ पिघलने (जैसे कि लाहौल-स्पीति क्षेत्र का Bara Shigri ग्लेशियर, जिसकी 27.7 किमी लंबाई व 126.45 km² क्षेत्र में पीछे हटने की गति दर्ज की गई है) और साथ ही साथ वायुमंडलीय तापमान में निरंतर वृद्धि के परिदृश्य में, वायुमंडल में जलवाष्प (atmospheric moisture) की मात्रा विशेष रूप से बढ़ रही है—जिसका वैज्ञानिक मापन IPCC AR6, IITM‑पुणे और CSIR‑NPL की रिपोर्टों में 12% से 18% वाज़ीपेक्षिक बढ़ोतरी के रूप में दर्ज है—और यह अतिरिक्त नमी जब पर्वतीय ढलानों पर गर्म हवा के संपर्क में आकर तेजी से संघनित होती है तो घंटे में 100 मिमी से अधिक बारिश वाले क्लाउडबर्स्ट की घटना को जन्म देती है ।

 IMD‑DWR और NDMA के सांख्यिकीय विश्लेषण दर्शाते हैं कि ग्लेशियर निकटतम क्षेत्रों में क्लाउडबर्स्ट की सूचना लगभग 60% घटनाओं की होती है, और हर 1 °C तापमान वृद्धि से करीब 7% अतिरिक्त वाष्पीकरण उत्पन्न होता है, जिससे मानसूनी बादलों तथा पश्चिमी विक्षोभों की तीव्रता में वृद्धि होती है, परिणामस्वरूप हिमाचल में 2013–2024 के बीच औसतन 12–20 और 2023 में 23 क्लाउडबर्स्ट की गणना दर्ज की गई है; वहीं ग्लेशियर झीलों (जैसे कि South Lhonak और Chorabari) का विस्तार GLOF (Glacial Lake Outburst Flood) की आशंका को बहुत बढ़ा रहा है ।

HiFlo‑DAT तथा Allen etal (2016) जैसे अनुसंधानों में बताया गया है कि Kullu व Satluj घाटियों में ग्लेशियर झीलों की संख्या 2000–2020 के दौरान 47% से बढ़ी और GLOF जोखिम 7‑fold तक पहुंच गया है—और ग्रीष्मकाल का पिघलना SAR डेटा (Steiner etal, 2017) अनुसार 4000–7000 m की ऊँचाई पर वर्ष का आधा समय पिघलावशील रहता है, जिससे सतही वाष्पीकरण बढ़ने से स्थानीय माइक्रो‑क्लाइमेट और अधिक आर्द्र व असमर्थनीय बनता जा रहा है।

 Black Carbon जैसी कण प्रदूषक व हिमस्तर पर जमकर ग्लेशियरों को तेज़ी से पिघलाने वाले तत्व, वायुमंडलीय ऊष्मा को बढ़ाकर स्थानीय कन्वेक्शन को और तीव्र करते हैं—जैसे 2023 में CSIR‑NPL एवं IITM द्वारा 15% तक ब्लैक कार्बन में वृद्धि दर्ज हुई, जिससे radiative forcing भी बढ़ा है—परिणामस्वरूप ना केवल क्लाउडबर्स्ट बल्कि तेज़ लैंडस्लाइड्स, Flash Floods और GLOF की घटनाएँ भी तेजी से बढ़ रहीं हैं, जिनमें दक्षिणी लोनक झील (South Lhonak Lake, Sikkim) की 2023 की GLOF घटना इसका नवीनतम उदाहरण है ।

हिमाचल में जलधारण संरचनाओं जैसे चेक‑डैम, परकोलेशन टैंक की अनुपस्थिति और सड़क, सुरंग निर्माण व बांधों की अंधाधुंध गतिविधियों ने जल‑निकासी तंत्र को बाधित कर दिया है, जिससे पिघले जल का गिरना और सतही बहाव तीव्र होकर बादल फटने को और विनाशकारी बना रहे हैं—IMD‑DWR आंकड़ों के अनुसार मानसून दिनों की संख्या कम होने पर भी तीव्र वर्षा के दिनों में 30–40 % की वृद्धि देखी गई है—जबकि IPCC‑AR6 अनुमान के अनुसार यह रुझान 2020–2040 में क्लाउडबर्स्ट की घटनाओं को 30–40 % तक बढ़ा सकता है, और ग्लेशियर पिघलाव‑वाष्पीकरण‑संघनन से निर्मित ‘Cryosphere Feedback Loop’ हिमालय को विकटम बनाता जा रहा है ।

NDMA‑2023 के आंकड़े यह भी बताते हैं कि हिमाचल के 9 जिलों (शिमला, मंडी, कुल्लू, लाहौल‑स्पीति, किन्नौर, चंबा, सिरमौर, सोलन व कांगड़ा) को ‘Cloud Burst Prone Zones’ में घोषित किया गया है, जहां रात्रि 8 बजे से सुबह 6 बजे के बीच 89% क्लाउडबर्स्ट की घटनाएँ होती हैं, और हिमाचल की कुल 80% भूमि भू‑स्खलन संवेदनशील घोषित हो चुकी है; इन सभी वैज्ञानिक सत्यापन, डेटा‑संचालित घटनाओं, ग्लेशियर‑SAR ट्रेंड, Black Carbon forcing, GLOF जोखिम, वायुमंडलीय moisture indices, NDMA‑IMD‑IPCC रिपोर्ट्स की नींव पर यह स्पष्ट है ।

ग्लेशियर पिघलाव और उससे वायुमंडलीय moisture की वृद्धि ही Himalaya में cloudburst और GLOF जैसी आपदाओं की आवृत्ति एवं तीव्रता को वैज्ञानिक एवं पर्यावरणीय दृष्टि से गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है, और यदि शासकीय नीतियाँ—जैसे जल संचयन, वन पुनर्स्थापन, Early Warning Systems, land‑use नियमन, climate‑resilient इन्फ्रास्ट्रक्चर—त्वरित एवं व्यापक रूप से लागू नहीं हुईं, तो आने वाले वर्षों में हिमाचल प्रदेश और अन्य हिमालयी क्षेत्र 40% से अधिक क्षेत्र में उच्च जोखिम का सामना करेंगे, जिसका प्रभाव पारिस्थितिकी, कृषि, जल संसाधन, पर्यटन और जन‑जीवन पर विनाशकारी होगा ।

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