पानी बचाने की क्रांति भारतीय अनुभव और वैश्विक तकनीकों का मेलपानी बचाने की क्रांति भारतीय अनुभव और वैश्विक तकनीकों का मेल

भारतीय अनुभव और वैश्विक तकनीकों का मेल

अजय सहाय

भारत में सरकारी तालाबों की भूमिका वर्ष 2047 तक ‘जल आत्मनिर्भर भारत’ के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एक केंद्रीय एवं निर्णायक स्तंभ के रूप में उभर रही है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि, घटता भूजल स्तर और अनिश्चित मानसून जैसी बहुआयामी समस्याओं के समाधान में यह परंपरागत जल स्रोत अब एकमात्र वैज्ञानिक विकल्प के रूप में सामने आ रहे हैं।

भारत सरकार द्वारा वर्ष 2018-19 में जारी प्रथम ‘जल निकाय गणना’ के अनुसार देश में कुल 24,24,540 जल निकायों की पहचान की गई, जिनमें से 14,42,993 तालाब हैं, जिनमें से लगभग 8.5 से 9 लाख तालाब सरकारी या पंचायत स्वामित्व वाले हैं। ये तालाब मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में केंद्रित हैं, जो ग्रामीण भारत के जल संतुलन और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं।

 वैज्ञानिक विश्लेषण और केंद्रीय भूजल बोर्ड, केंद्रीय जल आयोग तथा वेटलैंड्स इंटरनेशनल साउथ एशिया के अनुमानों के अनुसार यदि प्रत्येक तालाब का औसत क्षेत्रफल 1 हेक्टेयर और गहराई 2 मीटर मानी जाए तो प्रत्येक तालाब में 20,000 घन मीटर वर्षा जल संचयन की क्षमता होती है। इस आधार पर यदि 9 लाख सरकारी तालाब सक्रिय किए जाएं तो इनमें लगभग 18 अरब घन मीटर (18 बीसीएम) जल भंडारण संभव है ।

जो देश के कुल वार्षिक वर्षा जल 720 अरब घन मीटर का लगभग 2.5 प्रतिशत है और इससे 7 से 8 करोड़ ग्रामीण जनसंख्या की सिंचाई, पशुपालन और घरेलू जल आवश्यकता पूरी की जा सकती है। भारत में प्रतिवर्ष औसतन 4000 अरब घन मीटर वर्षा होती है, लेकिन इसमें से 82 प्रतिशत जल बहाव (रनऑफ) अथवा वाष्पन के रूप में नष्ट हो जाता है, जबकि मात्र 18 प्रतिशत जल (720 अरब घन मीटर) ही जल निकायों में संरक्षित हो पाता है, जिससे स्पष्ट है कि तालाब जल संरक्षण के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं।

वर्तमान में सरकारी आंकड़ों के अनुसार ‘अमृत सरोवर योजना’ (2022-23) के तहत 68,000 से अधिक अमृत सरोवरों का निर्माण हुआ है, ‘मनरेगा योजना’ के अंतर्गत 46,000 से अधिक तालाबों का निर्माण एवं संरक्षण हुआ है और कुल मिलाकर 3 लाख हेक्टेयर भूमि पर तालाब निर्माण, पुनर्जीवन और संरक्षण कार्य हुआ है। तालाबों पर अतिक्रमण एक गंभीर संकट बन गया है—’जल निकाय गणना’ के अनुसार 1.6 प्रतिशत यानी 38,496 जल निकायों पर अतिक्रमण है, जिनमें उत्तर प्रदेश (15,301), तमिलनाडु (8,366), आंध्र प्रदेश और तेलंगाना (3920-3920) शीर्ष पर हैं।

बिहार में 1,99,000 जल निकायों में से 12,027 पर अतिक्रमण दर्ज है और ‘जल-जीवन-हरियाली अभियान’ के तहत 9044 तालाबों को अतिक्रमण मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया था, किन्तु अब तक मात्र 531 तालाब ही अतिक्रमण मुक्त हो पाए हैं, जो कुल का 5 प्रतिशत से भी कम है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय का वर्ष 2011 का ‘जगपाल सिंह बनाम पंजाब राज्य’ निर्णय, पटना उच्च न्यायालय, मद्रास उच्च न्यायालय, तेलंगाना उच्च न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के निर्देशों ने सार्वजनिक जल निकायों से अतिक्रमण हटाने की स्पष्ट कानूनी व्यवस्था बनाई है।

 वैज्ञानिक विश्लेषणों के अनुसार यदि प्रत्येक सरकारी तालाब की गहराई औसतन 1.5 से 2 मीटर और बढ़ाई जाए तो इन तालाबों की जल संग्रहण क्षमता को 36 से 40 अरब घन मीटर तक बढ़ाया जा सकता है, जिससे 9 से 10 करोड़ अतिरिक्त जनसंख्या की जल आवश्यकताओं की पूर्ति संभव है। इस दिशा में भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) मानचित्रण, ड्रोन निगरानी, सुदूर संवेदन, जैविक घेराबंदी और मियावाकी पद्धति से वृक्षारोपण जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग अनिवार्य है।

 तालाबों के जलग्रहण क्षेत्र में वर्षा जल संचयन संरचनाओं, सोक पिट, जल रेखा खाइयों तथा चेक डैम जैसी संरचनाओं का निर्माण कर जल पुनर्भरण की क्षमता कई गुना बढ़ाई जा सकती है। साथ ही सामुदायिक सहभागिता, विद्यालयों में जल संरक्षण जागरूकता अभियान और ‘जल उपभोक्ता संघों’ (पानी पंचायतों) की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है। मत्स्य पालन, बत्तख पालन एवं जलीय वनस्पतियों के माध्यम से एकीकृत जलकृषि मॉडल अपनाकर तालाबों की आर्थिक उपयोगिता को भी बढ़ाया जा सकता है।

उदाहरण के तौर पर, बिहार के मुजफ्फरपुर और गया जिलों में तालाब आधारित मत्स्य पालन से हजारों ग्रामीणों को रोजगार मिला है। ‘तैरते वेटलैंड’, कमल की खेती तथा अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों के माध्यम से तालाबों में जल गुणवत्ता सुधार, कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण तथा ऑक्सीजन उत्सर्जन को बढ़ाया जा सकता है। ‘जलवायु अनुकूलन मॉडल’ के तहत तालाबों को बाढ़ और सूखा दोनों स्थितियों में जल-सुरक्षित मॉडल के रूप में पुनः डिज़ाइन किया जाना अत्यावश्यक है।

‘नीति आयोग’ की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार भारत के 256 जिले गंभीर जल संकट की चपेट में हैं और वर्ष 2047 तक भारत की अनुमानित जनसंख्या 170 करोड़ तक पहुंचने की आशंका है, जिससे प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता घटकर 1000 घन मीटर से भी कम हो सकती है, जो ‘जल संकट सीमा’ से नीचे मानी जाती है। इसी संदर्भ में यदि 5 एकड़ (लगभग 20,234.3 वर्ग मीटर) क्षेत्रफल वाला तालाब केवल 0.5 मीटर गहराई का भी हो तो उसमें 10,117 घन मीटर (10 लाख लीटर) वर्षा जल का संचयन संभव है, जिससे स्थानीय जल आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है।

अतः यदि इन सभी वैज्ञानिक, सामाजिक, कानूनी, तकनीकी एवं प्रशासनिक उपायों को एकीकृत रूप से लागू किया जाए तो भारत न केवल वर्ष 2047 तक ‘जल आत्मनिर्भर राष्ट्र’ बन सकता है, अपितु ‘सतत विकास लक्ष्य-6’ (स्वच्छ जल एवं स्वच्छता) जैसे वैश्विक लक्ष्यों को भी प्राप्त कर सकता है और साथ ही यह भारत की परंपरागत जल धरोहरों के संरक्षण एवं पुनर्जीवन का एक वैश्विक मॉडल बन सकता है, जो भावी पीढ़ियों के लिए स्थायी जल समाधान प्रस्तुत करेगा।

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