नदी बचाओ, जीवन बचाओ: भारत की नदियों का भविष्यनदी बचाओ, जीवन बचाओ: भारत की नदियों का भविष्य

भारत की नदियों का भविष्य

अजय सहाय

नदी बचाओ, जीवन बचाओ: भारत की नदियों का भविष्य विषय पर जब हम बात करते हैं तो यह केवल जल संरक्षण का प्रश्न नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिक तंत्र, कृषि, जलवायु, जैव विविधता और करोड़ों लोगों के जीवन-यापन से जुड़ा एक गहन मुद्दा है, क्योंकि भारत की 70% से अधिक आबादी आज भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नदियों पर निर्भर करती है, देश में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी सहित लगभग 400 से अधिक बड़ी-छोटी नदियाँ हैं जिनकी कुल लंबाई 45,000 किलोमीटर से अधिक है और इन नदियों का जलग्रहण क्षेत्र 3.12 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक है ।

 परंतु विडंबना है कि आज इनमें से 70% नदियाँ या तो प्रदूषण, रेत खनन, बांध निर्माण, शहरीकरण, औद्योगीकरण और जलवायु परिवर्तन के कारण संकटग्रस्त हो चुकी हैं या सूखने की कगार पर हैं, उदाहरण के तौर पर गंगा नदी, जो भारत की जीवनरेखा कही जाती है, उसमें औद्योगिक अपशिष्ट, सीवेज, प्लास्टिक और अन्य प्रदूषकों के कारण जैव विविधता का क्षरण हो रहा है, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार गंगा के विभिन्न हिस्सों में BOD (Biochemical Oxygen Demand) स्तर 6-8 mg/L तक पहुँच चुका है जबकि स्वच्छ जल का स्तर 3 mg/L से नीचे होना चाहिए ।

यमुना नदी के दिल्ली-एनसीआर हिस्से में प्रदूषण स्तर इतना अधिक है कि अमोनिया की मात्रा 10 ppm तक पहुँच जाती है, जबकि सुरक्षित सीमा 0.5 ppm है, वहीं भारत की 351 बड़ी नदियों में से 275 नदियाँ प्रदूषित श्रेणी में आती हैं, 2023 की India State of Forest Report के अनुसार नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों में वनों की कटाई के कारण मिट्टी क्षरण की दर 15.6 टन/हेक्टेयर/वर्ष हो चुकी है जिससे नदियों में गाद (silt) भराव बढ़ रहा है, परिणामस्वरूप बाढ़ और सूखे की तीव्रता बढ़ रही है ।

दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालयी नदियों में जल प्रवाह अस्थिर हो रहा है, वर्ष 2022 में वैज्ञानिकों ने पाया कि गंगा का वार्षिक प्रवाह पिछले 30 वर्षों में 15% तक घट चुका है, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों में जल स्तर मानसून के दौरान 30% तक बढ़ता है जबकि शुष्क ऋतु में 25% तक घटता है जिससे असंतुलन पैदा होता है, भारत में कुल 761 अरब घनमीटर (BCM) सतही जल उपलब्ध है, जिसमें से 690 BCM नदियों से आता है, लेकिन देश में प्रतिवर्ष औसतन 4000 अरब घनमीटर वर्षा होती है, जिसमें से 1123 अरब घनमीटर जल सतही प्रवाह (surface runoff) के रूप में नदियों में बहता है, जबकि शेष जल वाष्पीकरण, भूस्खलन और जलभराव में चला जाता है ।

इस 4000 अरब घनमीटर वर्षा जल का केवल 18% ही संरक्षित हो पाता है, शेष 82% जल समुद्र में चला जाता है या बेकार बह जाता है, यह स्थिति जल आत्मनिर्भर भारत 2047 के लक्ष्य को कठिन बना देती है क्योंकि जल मांग 2025 तक 843 BCM और 2050 तक 1180 BCM तक पहुँचने की संभावना है, नदियों के सूखने से यह संकट और गहरा जाएगा, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे राज्यों में नदियों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण कृषि संकट उत्पन्न हो रहा है ।

 वर्ष 2023 में महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में गोदावरी की सहायक नदियाँ 70% तक सूख गईं जिससे 15 जिलों में सूखा पड़ा, वहीं नर्मदा पर बने सरदार सरोवर बांध के कारण डाउनस्ट्रीम हिस्सों में जल प्रवाह 40% तक घटा है जिससे मछलियों की 35 प्रजातियाँ लुप्त होने की कगार पर हैं, देश के 60% से अधिक बांधों की उम्र 50 वर्ष से अधिक हो चुकी है जिससे जल संग्रहण क्षमता में औसतन 20-30% तक कमी आई है, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नदियों के स्वास्थ्य के लिए E-flow (Ecological Flow) सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है ।

भारत सरकार की 2021 की नीति के अनुसार गंगा में कम से कम 20-30% प्राकृतिक प्रवाह बनाए रखना चाहिए, परंतु व्यवहार में यह प्रवाह 10% से भी कम रह जाता है, नदी पुनर्जीवन के लिए भारत में कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं जैसे नमामि गंगे, नर्मदा सेवा यात्रा, कावेरी कॉलिंग, लेकिन 2023 तक नमामि गंगे के तहत 293 परियोजनाओं में से केवल 179 पूरी हो पाई थीं और शेष 114 परियोजनाएँ लंबित थीं, नदी संरक्षण हेतु वैज्ञानिक तरीके जैसे जैविक उपचार (Bioremediation), constructed wetlands, riparian buffer zones का निर्माण, जलग्रहण क्षेत्र में वन बहाली, रेत खनन पर नियंत्रण, औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन आदि अपनाने की आवश्यकता है ।

 उदाहरणस्वरूप, केरल की पुनर्जीवित मीनाचिल नदी में जलग्रहण क्षेत्र में वृक्षारोपण और सामुदायिक सहभागिता से नदी का जलस्तर 20% तक बढ़ा है, इसके अलावा हिमालयी नदियों के लिए ग्लेशियर निगरानी और संरक्षण भी अनिवार्य है क्योंकि गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ 60-70% तक ग्लेशियर पिघलाव पर निर्भर करती हैं, IPCC की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार 2100 तक हिमालयी ग्लेशियरों का 30-50% हिस्सा पिघल सकता है जिससे नदियों का प्रवाह असंतुलित होगा ।

 इससे बचने के लिए जल संग्रहण क्षमता बढ़ाने, वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित करने, और पारंपरिक जल स्रोतों जैसे तालाब, झील, बावड़ी, झरने आदि का पुनरुद्धार करने की आवश्यकता है ताकि 4000 अरब घनमीटर वर्षा जल का न्यूनतम 30-40% भी संरक्षित किया जा सके जिससे जल आत्मनिर्भर भारत 2047 का सपना साकार हो सके और नदियों का अस्तित्व सुरक्षित रहे क्योंकि नदियों के बिना न केवल कृषि और पेयजल संकट गहरा जाएगा बल्कि जैव विविधता, जलवायु और मानव जीवन भी संकट में आ जाएगा ।

इसलिए नदी बचाओ, जीवन बचाओ अभियान को राष्ट्रीय आंदोलन बनाकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण, डेटा आधारित रणनीतियाँ और जन सहभागिता को साथ लेकर ही भारत की नदियों का भविष्य सुरक्षित किया जा सकता है।

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